anish इलाज के अभाव में एड्स से भी अधिक खतरनाक है एमडीआर व एक्सडीआर टीबी - . "body"

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इलाज के अभाव में एड्स से भी अधिक खतरनाक है एमडीआर व एक्सडीआर टीबी


- दवाओं के सेवन में लापरवाही बरतने के कारण सामान्य टीबी एमडीआर और एक्सडीआर में हो जाती है तब्दील 

- अब 24 माह की जगह 9 से 11 माह में दवाओं के नियमित सेवन से ठीक हो जाते हैं मरीज


BY ADMIN

M V ONLINE BIHAR NEWS/बक्सर, 25 जुलाई | चिकित्सक किसी भी बीमारी में दवाओं का पूरा कोर्स करने की नसीहत देते हैं। यह नसीहत तब अधिक जरूरी हो जाती है, जब बीमारी गंभीर हो। ऐसा ही हाल टीबी के मामले में भी होता है। टीबी के मरीजों को इलाज के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा करने के लिए कहा जाता है। उसके बावजूद कई लोग लापरवाही के कारण दवाओं का नियमित सेवन नहीं करते हैं, जिसकी बदौलत वे मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) और एक्सटेंसिव ड्रग रेजिस्टेंट(एक्सडीआर) स्टेज पर पहुंच जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि टीबी का ही बिगड़ा हुआ रूप एमडीआर टीबी है। इसके बैक्टीरिया पर टीबी की सामान्य दवाएं नाकाम हो जाती हैं। आम टीबी कुपोषित या कमजोर शरीर वाले को अपनी गिरफ्त में लेती है, लेकिन एमडीआर टीबी यह भेद नहीं करती। यह हर वर्ग के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है। लेकिन, अब एमडीआर और एक्सडीआर टीबी का इलाज भी असान हो चुका है। 


टीबी की खतरनाक श्रेणी एक्सडीआर :

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह सीडीओ डॉ. अनिल भट्‌ट ने बताया, जब एमडीआर टीबी के रोगी की दवा शुरू करने के छह माह बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो वह एक्सडीआर टीबी की श्रेणी में आ जाते हैं। टीबी की खतरनाक श्रेणी एक्सडीआर है। इससे सावधानियां बरतने की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसके लिए दवा नियमित लेनी होती है। लेकिन, एमडीआर व एक्सडीआर टीबी के मरीजों के लिए राहत की खबर यह है कि अब इन मरीजों को ठीक होने के लिए 24 माह नहीं, बल्कि 9 से 11 माह ही दवा खानी पड़ती है। एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीजों के लिए सबसे महंगी दवा बेडाक्विलीन उपलब्ध होने के बाद यह संभव हुआ है। उन्होंने  बताया पूर्व में इनके इलाज में काफी लंबा समय लगता था, लेकिन अब एक साल से भी कम समय में मरीज टीबी के इन श्रेणियों से भी निजात पा जाते हैं।


टीबी के मरीज सावधानियां बरतें और नियमित दवाओं का सेवन करें :

जिले में एक्सडीआर श्रेणी के लगभग एक दर्जन मरीज हैं। जिनका इलाज चल रहा है। जब एमडीआर श्रेणी वाले मरीज जब लापरवाही बरतने लगते है, नियमित दवा का सेवन नहीं करते है वो ही एक्सडीआर की चपेट में आ जाते हैं। टीबी के प्रति लापरवाही बरतना खतरनाक साबित हो सकता है। जो भी टीबी के मरीज हैं  वो सावधानियां बरतें और नियमित दवा का सेवन करते रहें । एमडीआर श्रेणी भी खतरनाक है, इसके जिले में 30 मरीज हैं । इसके प्रति भी लापरवाही ठीक नहीं है। उन्होंने बताया, इलाज के क्रम में लापरवाही ही इन समस्याओं की जड़ है। एमडीआर का खतरा टीबी के वे रोगी जो एचआइवी से पीड़ित हैं, जिन्हें फिर से टीबी रोग हुआ हो, टीबी की दवा लेने पर भी बलगम में इस रोग के कीटाणु आ रहे हैं या टीबी से प्रभावित वह मरीज जो एमडीआर टीबी रोगी के संपर्क में रहा है, उसे एक्सडीआर टीबी का खतरा हो सकता है।

टीबी की जांच के लिए सभी प्रखंडों में लगेगी ट्रू-नेट मशीन :

'वैसे तो जिले में टीबी रोगियों की जांच की व्यवस्था सभी प्रखंडों में हैं। लेकिन, राजपुर, सिमरी, ब्रह्मपुर व डुमरांव में ट्रू-नेट मशीन इंस्टॉल है। जिससे मरीजों की टीबी जांच आसान हो गई है। राज्य स्वास्थ्य समिति के निर्देश पर जिले के सभी प्रखंडों में ट्रू-नेट मशीन लगाई जाएगी। जिसके बाद टीबी की जांच में तेजी आएगी। साथ ही, लोगों का इलाज और मॉनिटरिंग भी सुदृढ़ किया गया है।' - डॉ. जितेंद्र नाथ, सिविल सर्जन, बक्सर

इलाज के अभाव में एड्स से भी अधिक खतरनाक है एमडीआर व एक्सडीआर टीबी

इलाज के अभाव में एड्स से भी अधिक खतरनाक है एमडीआर व एक्सडीआर टीबी


- दवाओं के सेवन में लापरवाही बरतने के कारण सामान्य टीबी एमडीआर और एक्सडीआर में हो जाती है तब्दील 

- अब 24 माह की जगह 9 से 11 माह में दवाओं के नियमित सेवन से ठीक हो जाते हैं मरीज


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M V ONLINE BIHAR NEWS/बक्सर, 25 जुलाई | चिकित्सक किसी भी बीमारी में दवाओं का पूरा कोर्स करने की नसीहत देते हैं। यह नसीहत तब अधिक जरूरी हो जाती है, जब बीमारी गंभीर हो। ऐसा ही हाल टीबी के मामले में भी होता है। टीबी के मरीजों को इलाज के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा करने के लिए कहा जाता है। उसके बावजूद कई लोग लापरवाही के कारण दवाओं का नियमित सेवन नहीं करते हैं, जिसकी बदौलत वे मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) और एक्सटेंसिव ड्रग रेजिस्टेंट(एक्सडीआर) स्टेज पर पहुंच जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि टीबी का ही बिगड़ा हुआ रूप एमडीआर टीबी है। इसके बैक्टीरिया पर टीबी की सामान्य दवाएं नाकाम हो जाती हैं। आम टीबी कुपोषित या कमजोर शरीर वाले को अपनी गिरफ्त में लेती है, लेकिन एमडीआर टीबी यह भेद नहीं करती। यह हर वर्ग के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है। लेकिन, अब एमडीआर और एक्सडीआर टीबी का इलाज भी असान हो चुका है। 


टीबी की खतरनाक श्रेणी एक्सडीआर :

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह सीडीओ डॉ. अनिल भट्‌ट ने बताया, जब एमडीआर टीबी के रोगी की दवा शुरू करने के छह माह बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो वह एक्सडीआर टीबी की श्रेणी में आ जाते हैं। टीबी की खतरनाक श्रेणी एक्सडीआर है। इससे सावधानियां बरतने की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसके लिए दवा नियमित लेनी होती है। लेकिन, एमडीआर व एक्सडीआर टीबी के मरीजों के लिए राहत की खबर यह है कि अब इन मरीजों को ठीक होने के लिए 24 माह नहीं, बल्कि 9 से 11 माह ही दवा खानी पड़ती है। एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीजों के लिए सबसे महंगी दवा बेडाक्विलीन उपलब्ध होने के बाद यह संभव हुआ है। उन्होंने  बताया पूर्व में इनके इलाज में काफी लंबा समय लगता था, लेकिन अब एक साल से भी कम समय में मरीज टीबी के इन श्रेणियों से भी निजात पा जाते हैं।


टीबी के मरीज सावधानियां बरतें और नियमित दवाओं का सेवन करें :

जिले में एक्सडीआर श्रेणी के लगभग एक दर्जन मरीज हैं। जिनका इलाज चल रहा है। जब एमडीआर श्रेणी वाले मरीज जब लापरवाही बरतने लगते है, नियमित दवा का सेवन नहीं करते है वो ही एक्सडीआर की चपेट में आ जाते हैं। टीबी के प्रति लापरवाही बरतना खतरनाक साबित हो सकता है। जो भी टीबी के मरीज हैं  वो सावधानियां बरतें और नियमित दवा का सेवन करते रहें । एमडीआर श्रेणी भी खतरनाक है, इसके जिले में 30 मरीज हैं । इसके प्रति भी लापरवाही ठीक नहीं है। उन्होंने बताया, इलाज के क्रम में लापरवाही ही इन समस्याओं की जड़ है। एमडीआर का खतरा टीबी के वे रोगी जो एचआइवी से पीड़ित हैं, जिन्हें फिर से टीबी रोग हुआ हो, टीबी की दवा लेने पर भी बलगम में इस रोग के कीटाणु आ रहे हैं या टीबी से प्रभावित वह मरीज जो एमडीआर टीबी रोगी के संपर्क में रहा है, उसे एक्सडीआर टीबी का खतरा हो सकता है।

टीबी की जांच के लिए सभी प्रखंडों में लगेगी ट्रू-नेट मशीन :

'वैसे तो जिले में टीबी रोगियों की जांच की व्यवस्था सभी प्रखंडों में हैं। लेकिन, राजपुर, सिमरी, ब्रह्मपुर व डुमरांव में ट्रू-नेट मशीन इंस्टॉल है। जिससे मरीजों की टीबी जांच आसान हो गई है। राज्य स्वास्थ्य समिति के निर्देश पर जिले के सभी प्रखंडों में ट्रू-नेट मशीन लगाई जाएगी। जिसके बाद टीबी की जांच में तेजी आएगी। साथ ही, लोगों का इलाज और मॉनिटरिंग भी सुदृढ़ किया गया है।' - डॉ. जितेंद्र नाथ, सिविल सर्जन, बक्सर