संतो के मार्गदर्शन से होता है भगवान का दर्शन
BY ADMIN
M V ONLINE BIHAR NEWS/बक्सर:- दुनिया में कितने भी बड़े हो जाओ,या सारी दुनिया चेला हो जाए पर भगवत प्रेम नही मिला तो सब थोथा है।ऐसे बैकुंठ धाम में सौंकादिक पहुंचे,भगवान के दर्शन की लालसा से बैकुंठ पहुंच गए,6दरवाजे पार कर लिए, 7वे दरवाजे पर जय विजय पार्षदों ने रोक लगा दी, तो बहुत कष्ट हुआ,दर्शन में विघ्न हुआ तो क्रोधित हुए,अरे तुम भगवान के द्वार पाल हो लेकिन तुम्हारा ये व्यवहार संतो के प्रति अच्छा नही है,भगवान तो परम शांत स्वभाव के है,मनुष्य अपने कपट,छल,छिद्र का दूसरे में भी दर्शन करता है, तुम लगता है स्वयं कपटी हो इसीलिए तुम्हारा हमारे प्रति भाव अच्छा नहीं है,
अब तुम्हे वही जाना पड़ेगा जहां काम,क्रोध,लोभ रहता है, उस असुर योनि में जाना पड़ेगा। सच्ची घटना बताता हु,ऐसी ही घटना एक बार मेरे साथ हुई थी 2013में मैं जब केदार नाथ दर्शन करने गया तो वहां के पंडा ने कहा इस दरवाजे से नहीं उस दरवाजे से ,उधर गए तो उस पंडे ने कहा उधर से ,फिर पहले दरवाजे पर आए और फिर दर्शन करने नही दे रहा था और वही पैसे लेकर दूसरे को दर्शन करा रहा था , हमे गुस्सा आया और हमने कहा तुम्हारी वही स्थिति होगी जो जय विजय पार्षदों की हुई और दर्शन कर के वहा से निकल गए ,उसके अगले दिन सारे पंडे और उनका घर दुकान सब बह गया। इसीलिए कभी भी भगवान के संत भक्तो का अपमान नही करना चाहिए,भगवान स्वयं कहते है,
तृतीय सकंध के, दसवें अध्याय के छठे श्लोक में हमारी भुजाए ही क्यों न हो अगर संतो का अपराध कर दे तो उनको खंड विखंड कर डालूंगा। इसीलिए जय विजय पार्षदों को नीचे गिरना पड़ा,पहले जन्म में हिरणायक्ष,हिरणकश्यपु,दूसरे जन्म में रावण,कुंभ करण,तीसरे जन्म में शिशुपाल और दंतवक्र बनना पड़ा।